“मध्य प्रदेश: गलत साक्ष्यों के आधार पर मौत की सज़ा, 11 साल बाद अदालत ने किया बरी“
मध्य प्रदेश के एक बहुचर्चित रेप केस में महज़ एक महीने के भीतर आरोपी को मौत की सज़ा सुनाई गई थी। इसके बाद दो अन्य अदालतों ने भी उस फैसले को बरकरार रखा। लेकिन इस साल मार्च 2024 में केस ने एक नया मोड़ लिया।
खंडवा की ज़िला अदालत ने कहा कि मामले में साक्ष्यों का गलत तरीके से विश्लेषण किया गया था और अपराध किसी और व्यक्ति ने अंजाम दिया था। अदालत ने आरोपी को इस जुर्म से बरी कर दिया।
11 साल का संघर्ष
इस फैसले से पहले आरोपी ने 11 साल तक अपनी बेगुनाही की लड़ाई लड़ी। फैसले के दौरान अदालत ने माना कि गलत गवाही और कमजोर जांच प्रक्रिया के चलते उसे मौत की सज़ा मिली थी।
जांच की खामियां
खंडवा अदालत ने पाया कि साक्ष्यों का सही तरीके से मूल्यांकन नहीं किया गया। जांच में कुछ जरूरी पहलुओं की अनदेखी हुई थी, जिससे असली अपराधी का पता नहीं लग सका और एक निर्दोष को सज़ा भुगतनी पड़ी।
पीड़िता के परिवार और आरोपी की प्रतिक्रिया
इस मामले को समझने के लिए बीबीसी की टीम ने पीड़िता के परिवार और बरी किए गए व्यक्ति से मुलाकात की। रिपोर्ट में पीड़ित परिवार के दर्द और आरोपी के 11 साल के संघर्ष को विस्तार से बताया गया है।
न्यायिक प्रक्रिया पर सवाल
इस केस ने जांच एजेंसियों और न्यायिक प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। सवाल यह भी है कि गलत साक्ष्यों के आधार पर किसी को मौत की सज़ा कैसे सुनाई जा सकती है और उसे न्याय दिलाने में इतना लंबा समय क्यों लग गया।
नतीजा
खंडवा की अदालत ने आखिरकार उस निर्दोष व्यक्ति को रिहा कर दिया और मामले में सच्चे दोषी को पकड़ने के लिए नए सिरे से जांच की जरूरत पर ज़ोर दिया।